गुरुवार, 17 जून 2010

देश की माटी फिर पुकारे

देश की माटी फिर पुकारे
मेरे सपूतो वापिस आओ।
लाखों की शहादत को न तुम
इस तरह से व्‍यर्थ गंवाओं।।
मत सोचो कि अहिंसा की बात कहने
अब फिर कोई गांधी आएगा।
न इंकलाबी ख्‍यालात लेकर कोई,
भगतसिंह सी शहादत दोहराएगा।
60 वर्षों में जो कुछ पाया,
उसपे न तुम गुमान करो
इतना कुछ खोया है हमने,
न अब किसी का गुणगान करो।
शिक्षा, भाषा, रोजगार, स्‍वास्‍थ्‍य,
बिकता यहां अब पानी है।
जहर भर दिया पूंजी के लुटेरों ने ,
गरीब की कहां बदली कहानी है।
विभाजन, युद्ध, भाषाविरोध, आपातकाल, गैसत्रासदी, दंगे
क्‍या यही विकास की कहानी है।
हमने इन कामों से अपने
इंसानियत को है शर्मसार किया।
मुझे बताओ देश में अब तक किसने,
इंसानियत का कोई काम किया।
देश में भिखारी, भूखे बच्‍चे, गलीकूचों में घूम रहे
गंदगी के सैलाब में अपने को दोजून का खाना ढूंढ रहे।
उठो अब संभलने का वक्‍त है
नहीं तो भविष्‍य दिखाएगा,
भटक के रास्‍ता कैसे मिटा देश एक
यह कहानी हर कोई बताएगा।

जय हिंदी जय भारत

1 टिप्पणी:

  1. प्रिय साथी बात तो सही है, लेकिन लोगों को जगाने के लिए समय समय पर जोश दिलाना बहुत जरूरी है, हमारे भारत का असली चित्र तो इन पंक्तियों मे मिलता ही है साथ ही साथ पूँजीवाद कैसे हमारे ऊपर हावी है यह भी भलिभाँति देखने को मिला है और यह तो सदियों से होता आया बस इसी का तो रोना है। सही मायने में देश के लिए किसी ने नहीं सोचा सबने अपनी रोटी सेंकी हैं। जिन्होंने सोचा उन्हें किसी का सपोर्ट नहीं मिला या सत्ता से विरत कर दिया गया। ये सत्ताधारियों की बनाई गई नीतियाँ हमेशा से पूँजीवाद के इर्द-गिर्द ही रही हैं और सारी की सारी नीतियाँ केवल उन्हीं की भलाई के लिए बनी हैं एक समय था जब संसद में किसी भी पूँजी वादी को अपने हित की बात करने में सोचना पड़ता था और अब तो पूँजीवाद ही संसद में बैठता है उनके बनाए हुआ ढाँचे का अब सरकार अनुपालन करती है। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि असली भारत तो गाँव में बसता है जहाँ सारी सुख सुविधाओं से असली भारतवासी अभी भी वंचित है।

    लेकिन तुम्हारे प्रयास से लगता है कि शायद लोगों के मन में सोया हुआ मानव्त जाग जाएगा आशा करता हूँ कि लोग इसे पढ़कर अपनी कुंठा व्यक्त करेंगे।
    जय हिंदी जय हिंदी जय हिंदुस्तान........

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