शुक्रवार, 13 मई 2011

जब प्यार की हवा चले



जब प्यार की हवा चले,
तो दिल क्यों न बहके।

जब रात गहरी हो,
चांदनी क्यों न चहके।

जब सुनाई दे दिलकश राग,
तो कदम क्यों ने थिरके।

जब सांसों से मिले सासें,
तो मन कैसे न लड़खे।

जब अंधेरा हो जाए दूर,
तो सुबह क्यों न महके।

बुधवार, 4 मई 2011

शायरी

यहां आजकल खामोश होकर परिंदे भी रोते है
बे-गुनाह कत्ल इस धरती पर हर रोज क्यों होते हैं ।
****
यह सोच लो अब आखिरी साया मोहब्बत है
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा ।।
****
चांद सा मिसरा अकेला है
मेरे कागज की छत पर तुम आके
मेरा शेर मुकक्मल कर दो ।।
****
इस शहरे बे-वफा में जब भटकने लगो
मेरा दर खुला है इधर ही चले आना ।।
****
तुमने नफरत की सड़क तामीर की
हमने प्यार के पुल उसपे बना दिए ।