गुरुवार, 24 जून 2010

बरसात

बरसात की एक बूंद
मेरे तन पर
जब पड़ी
तो दिल की धडकनें
तेज हो गईं
और
मन में
एक बार
फिर
डर घर
करने लगा
कि इस
बार भी बाढ
का प्रकोप
कई जानें
लेने जरूर आएगा।
गरीब की
छत फिर जाएगी
अमीर की जेब
फिर राहत
के पैसे से
भर जाएगी।।

गुरुवार, 17 जून 2010

देश की माटी फिर पुकारे

देश की माटी फिर पुकारे
मेरे सपूतो वापिस आओ।
लाखों की शहादत को न तुम
इस तरह से व्‍यर्थ गंवाओं।।
मत सोचो कि अहिंसा की बात कहने
अब फिर कोई गांधी आएगा।
न इंकलाबी ख्‍यालात लेकर कोई,
भगतसिंह सी शहादत दोहराएगा।
60 वर्षों में जो कुछ पाया,
उसपे न तुम गुमान करो
इतना कुछ खोया है हमने,
न अब किसी का गुणगान करो।
शिक्षा, भाषा, रोजगार, स्‍वास्‍थ्‍य,
बिकता यहां अब पानी है।
जहर भर दिया पूंजी के लुटेरों ने ,
गरीब की कहां बदली कहानी है।
विभाजन, युद्ध, भाषाविरोध, आपातकाल, गैसत्रासदी, दंगे
क्‍या यही विकास की कहानी है।
हमने इन कामों से अपने
इंसानियत को है शर्मसार किया।
मुझे बताओ देश में अब तक किसने,
इंसानियत का कोई काम किया।
देश में भिखारी, भूखे बच्‍चे, गलीकूचों में घूम रहे
गंदगी के सैलाब में अपने को दोजून का खाना ढूंढ रहे।
उठो अब संभलने का वक्‍त है
नहीं तो भविष्‍य दिखाएगा,
भटक के रास्‍ता कैसे मिटा देश एक
यह कहानी हर कोई बताएगा।

जय हिंदी जय भारत

सोमवार, 14 जून 2010

हमें माफ करना हिंदी भाषा

हमें माफ करना हिंदी भाषा,
तेरा कर्ज न हम चुका सके।
हो के स्वतंत्र तेरे सहारे से
सम्मान न हम तुझे दिला सके।
स्‍वतंत्रता के कर्णधारों ने तुझे,
रख संविधान में सम्‍मान दिया।
पर अंग्रेजों के पिछलग्गुओं ने
मिलकर अस्‍तित्‍व को तेरे मिटाने का प्रयास किया।
तूने सुदृढ़, कठोर,अविचल रहकर
नया सभी को है मुकाम दिया।
मिडिया, सिनेमा में रंग जमाकर,
नेताओं को भी बडा नाम दिया।
तेरे आगे जिनको झुकाना था मस्तक,
उन्‍होंने न कभी तेरा स्‍तुतिगान किया।
हमें माफ कर देना ऐ हिंदी भाषा तेरे लिए हमने न कुछ काम