गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

क्‍या हिंदी के अच्‍छे दिन आ गए हैं

देश के प्रधानमंत्री के रूप जब श्री नरेन्‍द्र मोदी जी ने हिंदी में शपथ ली तभी से यह लग रहा था कि हिंदी के दिन अच्‍छे होने वाले हैं। हालांकि,  आरंभ में गृह मंत्रालय द्वारा हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने के सामान्‍य सरकारी आदेशों को लेकर मीडिया, हिंदीतर भाषी राज्‍यों और उच्‍च वर्ग के लोगों में कुछ आशंकाएं पनपी या बेवजह तूल भी दिया गया परंतु सरकार ने इन आशंकाओं को समाप्‍त कर दिया। मेरा यह मानना है कि हिंदी को देश की भाषा बनाने के लिए सरकारी आदेशों से कहीं ज्‍यादा आवश्‍यक व्‍यवहार में उसका प्रयोग बढ़ाने की हैं। देश के प्रधानमंत्री यह जानते हैं और समझते हैं कि देश के लोगों के साथ उनकी भाषा में ही संवाद स्‍थापित किया जा सकता है। चुनाव प्रचार के दौरान उनका क्षेत्र विशेष में जाकर उनकी भाषा में भाषण की शुरूआत करना इस बात को समझने के लिए काफी था कि वह देश की सही नब्‍ज़ को पकड़ रहे हैं। गुजरात में जहां वो अपनी बात गुजराती में करते रहे वहीं देश के लोगों के साथ वह हिंदी में ही बात करते थे। पिछली सरकारों इस बात का महत्‍व कभी नहीं समझा और बेवजह अंग्रेजी का बोझ लोगों पर थोपते रहे। हिंदी भाषा के प्रति संविधान की मूल भावना को समझने की आवश्‍यकता है जिसकी पिछली सरकारों ने अनदेखी की। हिंदी भाषा के विकास को सरकारी आदेशों तक सीमित कर दिया गया। शायद देश में हिंदी भाषा के प्रति बढ़ते हीनता और उदासीनता के माहौल पर ध्‍यान दिया जाता तो आज अन्‍य भाषाओं और हिंदी भाषा के समन्‍वय पर सम्‍मेलन किए जा रहे होते। कई दश्‍कों तक संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में भाषण देना एक प्रेरणादायी समाचार बना रहा। आज सुखद स्‍थिति यह है कि उसी मंच से  माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी स्‍वभाव से हिंदी में बात कर रहे हैं और साथ ही विदेश मंत्री और अन्‍य मंत्री भी। इतना ही नहीं उन्‍होंने अपने विदेशी दौरों में हिंदी में बात करके भाषा को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी मजबूत किया है। हाल ही में अमेरिका यात्रा के दौरान मोदी जी ने गूगल को देश की 24 भाषाओं में कार्य करने की सुविधा तैयार करने की बात कहकर साबित किया कि वह देश के अन्‍य भाषाओं के विकास को लेकर भी गंभीर हैं। यह पूर्ण रूप से स्‍पष्‍ट हो रहा है कि हिंदी भाषा पूरे देश को जोड़ने का काम करने वाली भाषा थी, है और रहेगी। इसमें दोराय नहीं कि अभी भी कई राज्‍यों की प्रथम भाषा अंग्रेजी ही है विशेषकर नार्थ ईस्‍ट। लेकिन जब भाषाओं के संवर्द्धन की बात होती है तो उसमें अंग्रेजी को अलग करके नहीं देखना चाहिए। अंग्रेजी आज देश की नई पीढ़ी की भाषा के रूप में महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखती है लेकिन पिछली सरकारों में अंग्रेजियत को बुद्धिमता का द्योतक मान लिया गया था। आज स्‍थिति बिलकुल भिन्‍न है। श्री नरेन्‍द्र मोदी जी ने 15 महीनों में हिंदी को जिस प्रकार विश्‍वमंच पर प्रस्‍तुत किया है वो निश्‍चित रूप से सरहानीय है और वो इस तथ्‍य को भी मजबूत किया है कि अपनी बात को जितनी अच्‍छी तरह आप अपनी भाषा में रख सकते हैं उतना किसी और भाषा में नहीं रख सकते। यह भी उल्‍लेखनीय है कि मोदी जी को जहां आवश्‍यक लगता है वहां अंग्रेजी में बोलते हैं।
यह कहना तो उचित है कि इस सरकार के आने के बाद देश में हिंदी भाषा के प्रति अपनत्‍व ओर सम्‍मान की भावना बढ़ी है और भाषा को दिल से अपनाने का माहौल भी बना है। देश के मौजूदा भाषाविदों, साहित्‍यकारों, लेखकों, कवियों, प्रिंट और इलैक्‍ट्रॉनिक मीडिया के संपादकों, चिंतकों, भाषा के उत्‍थान से जुड़े विचारकों, फिल्‍मी जगत की हस्‍तियों को एक साथ मिलकर देश की विभिन्‍न भाषाओं को एक मंच पर लाने के लिए सेतु बनाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी अच्‍छी स्‍थिति में भाषाओं को एक दूसरे के नजदीक लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। कुछ महीनों पहले मीडिया में हिंदी भाषा को लेकर बहुत सी परिचर्चाएं हुए और देश के प्रमुख चैनलों ने हिंदी भाषा को लेकर कई कार्यक्रम किए जो पहले कभी नहीं देखे गए। इसका अर्थ यह है कि देश में भाषा के विकास की चर्चा की संभावना है परंतु यह रचनात्मक सोच होनी चाहिए हानिकारक नहीं। यह चर्चाएं लोगों को जोड़ने का काम करें तोड़ने का नहीं। इससे देश त्रीव गति से उन्‍नति के रास्‍ते पर चलेगा। जय हिंद