सोमवार, 30 नवंबर 2009

बेटी की किस्मत

इस देश में, कहने का तो लक्ष्मी का अवतार है बेटी
फिर भी क्यों हर जगह इतनी लाचार है बेटी
दहेज के भेड़ियों के जस्त में गिरफ्तार है बेटी
तन से ही नहीं, आज तो आत्मा से भी तार-तार है बेटी

ना जाने कितनों के लिए तो
सिर्फ कारोबार है बेटी, इक बाजार है बेटी

कही दान करके, भुला दी जाती है
तो कही रोटी की तरह तंदूर में
जला दी जाती है
कहीं तो जागने से पहले ही
सुला दी जाती है बेटी

कभी सति के नाम पर
बलि चढ़ा दी जाती है
कभी परंपरा तो कहीं मज़हब के नाम पर
पर्दे के पीछे छिपा दी जाती है बेटी

आगे आना भी चाहे तो
समाज का डर दिखाकर
दहला दी जाती है बेटी
परिवार की इज्जत का ठेका देकर
बिठा दी जाती है बेटी

औरत ही मर्द को लाई इस संसार में और
मर्द उसे छोड़ आया जिस्म के बाजार में ।

सोमवार, 23 नवंबर 2009

तेरी याद

लिपट गया तेरी यादों के झरोखों में
रात जब तनहाई ने मुझे घेरना चाहा
सन्‍नाटों ने लाख की कोशिशें अपनी
घने अंधरे ने भी मुझे डराना चाहा

हवा के तेज झोंखों से रही हिलती खिलकियां
जब कोई न था मेरे पास सुनने को सिसकियां
तेरी याद कुछ इस तरह से लिपटी रही मुझसे
जैसे अकेले में भी सहारा मुझे देना चाहा

तेरे प्‍यार को सलाम करता है यह शकील
जिसे हर बार तूने अपने में लिपटाना चाहा

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

शायरी

तुम्हारी मुस्‍कुराहट ने सुबह रोशन कर दी
न जाने कब से अंधेरों ने घेरे रखा था ।