सोमवार, 23 नवंबर 2009

तेरी याद

लिपट गया तेरी यादों के झरोखों में
रात जब तनहाई ने मुझे घेरना चाहा
सन्‍नाटों ने लाख की कोशिशें अपनी
घने अंधरे ने भी मुझे डराना चाहा

हवा के तेज झोंखों से रही हिलती खिलकियां
जब कोई न था मेरे पास सुनने को सिसकियां
तेरी याद कुछ इस तरह से लिपटी रही मुझसे
जैसे अकेले में भी सहारा मुझे देना चाहा

तेरे प्‍यार को सलाम करता है यह शकील
जिसे हर बार तूने अपने में लिपटाना चाहा

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