इस देश में, कहने का तो लक्ष्मी का अवतार है बेटी
फिर भी क्यों हर जगह इतनी लाचार है बेटी
दहेज के भेड़ियों के जस्त में गिरफ्तार है बेटी
तन से ही नहीं, आज तो आत्मा से भी तार-तार है बेटी
ना जाने कितनों के लिए तो
सिर्फ कारोबार है बेटी, इक बाजार है बेटी
कही दान करके, भुला दी जाती है
तो कही रोटी की तरह तंदूर में
जला दी जाती है
कहीं तो जागने से पहले ही
सुला दी जाती है बेटी
कभी सति के नाम पर
बलि चढ़ा दी जाती है
कभी परंपरा तो कहीं मज़हब के नाम पर
पर्दे के पीछे छिपा दी जाती है बेटी
आगे आना भी चाहे तो
समाज का डर दिखाकर
दहला दी जाती है बेटी
परिवार की इज्जत का ठेका देकर
बिठा दी जाती है बेटी
औरत ही मर्द को लाई इस संसार में और
मर्द उसे छोड़ आया जिस्म के बाजार में ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें