शुक्रवार, 13 मई 2011

जब प्यार की हवा चले



जब प्यार की हवा चले,
तो दिल क्यों न बहके।

जब रात गहरी हो,
चांदनी क्यों न चहके।

जब सुनाई दे दिलकश राग,
तो कदम क्यों ने थिरके।

जब सांसों से मिले सासें,
तो मन कैसे न लड़खे।

जब अंधेरा हो जाए दूर,
तो सुबह क्यों न महके।

1 टिप्पणी:

  1. क्या बात! क्या बात! क्या बात! महोदय इस नए प्लैटफार्म पर आपके नवीन रूप को मूर्तिमंत होते देख बहुत ही अच्छा लग रहा है। बहुत ही उमदा रचना है। सरल है, शब्दाडंबर हीन। किंतु साथ में दिल को छु लेने वाली रचना है। साभिनंदन धन्यवाद!

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