बुधवार, 5 मई 2010

जय हिंद, जय भारत, जय हिंदुस्‍तान राजभाषा का करो सम्‍मान

देख कर चहुं ओर परभाषा से प्‍यार
सिहर उठता है मेरा मन हर बार, बार-बार।
अपनी भाषा बिन सूना लगे मुझे संसार
कैसे समझाऊं सबको करो अपनी भाषा से प्‍यार ।।

अपनी भाषा में बात करना क्‍यों परभाषा सा लगता है
कौन से शब्‍दों से जोश भरूं में अब
जब खून भी पानी सा लगता है ।
लौट आएंगें सभी ऐसी कोई आशा नहीं
कैसे समझाऊं सबको अपनी भाषा से बढकर होता कोई नहीं।।

कई फूलों को गूंथकर हमने भारत देश रूपी माला बनाई है
हमारी अलग-अलग भाषाएं हैं पर गर्व है हमने सभी अपनाई है।
कौन है ऐसा जिसने गुलामी की भाषा को अपनाया है
हम ही जिसने समस्‍त संसार को गले से लगाया है।।

परभाषा से प्‍यार करो पर अपनी भाषा का सम्‍मान करो
अनुरोध है आप सब देशवासियो से मेरी पीडा का समाधान करो।
तुम परभाषा के सुख लो लेकिन
शहीदों को तो याद करो
वो जानते थे तभी परभाषा का बहिष्‍कार किया
अरे! ये क्‍या, हमने तो जाने-अनजाने
अपनी भाषा का तिरस्‍कार किया ।।

सुबह को भूला शाम को लोट कर आए उसे भूला नहीं कहते
आहवान करता हूं देशवासियो अपनी भाषा में लोट आओ
छोड के मोह परभाषा का अपनी भाषा का गुणगान गाओ

आओ करे एकजुटता का एलान, मिलकर जोश से बोलें
जय हिंद,जय भारत और जय हिंदुस्‍तान।।

2 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुंदर, पढ़कर तन-मन उमंग से भर गया। बाकई अब समय आ गया है उन सोये हुओं को जगाने का जो सब कुछ भूल बैठे हैं परभाषा की चाहत में।

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  2. bhut achchha hai bhai likhte rho yh rastriyta hee aap kee phchan bnni chahiye
    dr. ved vyathit

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