सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

गीत

काश के लम्‍हें ठहर ही जाते
जब तुम और हम साथ थे
तुम हकीकत में थी मेरे सामने
ऐसा लगा कि ख्‍वाब थे ।
काश के लम्‍हें...............
मुद्दतों के बाद मिले हम
प्‍यार से कैसे जी भर जाता
जितना मिलते उतना कम था
दिल को कैसे सूकून आता
अब तुमसे मिलने की ख्‍वाहिश लेकर
हम अपने दिल को हैं बहलाते
काश के लम्‍हे.............

2 टिप्‍पणियां:

  1. काश के लम्‍हें ठहर ही जाते
    जब तुम और हम साथ थे
    sundar panktiyan

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  2. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
    सही तो यही है कि कोई भी सुख को बाँध कर नही रख सकता।

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