शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

अपनी भाषा-अपना मान- सबका स्‍वाभिमान

पराई भाषा से कभी कोई द्वेष नहीं,
अपनी भाषा से बढकर कोई वेश नहीं
सीने में इक आग, मन में संकल्‍प लिए आगे बढो
अपनी भाषा के मान- अपने स्‍वाभिमान के लिए
अपनी भाषा में काम करो
सोचो इस भाषा ने हमें क्‍या नहीं दिया
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा
स्‍वराज्‍य मेरा जन्‍मसिद्ध अधिकार है, मैं इसे पाकर रहूंगा
इन नारों को याद करो जिन्‍होंने गुलामी की जंजीरों को तोडा था
सभी भारतीयों को एक मंत्र और एक सूत्र में जोडा था
यही वह भाषा है जो क्रांतिकारियों का हथियार बनी
उतरकर जन-जन के कंठों में, हमारी स्‍वतंत्रता का आधार बनी
क्‍यों भूल गए हम इस भाषा की कुर्बानी को
क्‍यों रह रहे हैं हम मारकर अपने जज्‍बातों को
मेरे मन में प्रश्‍न उठता है, क्‍यों करें गुलामी पर भाषा की
उठाएं कलम लिखें भारतीयों के नाम एक पत्र
भारतीय भाषाओं के मध्‍य हिंदी सदा सिंहासन पर विराजती रहे
हम यह गीत फिर गुनगुनाते रहें

सारे जहां से अच्‍छा हिंदोस्‍तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसके यह गुलसितां हमारा
जय हिंद, जय भारत

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना है, आपको बहुत-बहुत बधाई। आशा है आप अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी ब्लोग जगत को संमृद्ध बनायेगें। आपका स्वागत हैं।

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