मेरी श्रद्धांजलि
शब्दों की गूंज से आकाश हिल गया
क्या हमने सच्च में अटल खो दिया।
वो, जिसकी वाणी से हिल जाते थे पर्वत,
आज बिना कुछ कहे हमसे विदा ले गया।
मैं कभी तुमसे मिला नहीं
तो यह शून्यता मेरे अंदर क्यों।
कहीं तुम मेरे विचार तो नहीं थे
मेरी सोच का संचार तो नहीं थे।
तुम्हारी बेबाकी, वाक्पटुता और इंसानियत से प्यार,
कभी राजधर्म सीखते तो कभी स्नेह बिखेरते विचार
वो सच्ची तीखी बातें, वो तलखी का अंदाज़
नेहरू की फ़ोटो हटने पर कैसे हुए थे नाराज़
तुम गरीब की आवाज़ बने, गांवों के मसीहा
तुम्हारे शब्द हर लेते थे देशवासियों की पीड़ा।
धर्म, जाति, सम्प्रदाय से कभी न तो कोई द्वेष
हर किसी को अपनाया, बनकर सबका वेश।।
अपने विपक्षियों को तुमने क्या अपना बनाया है
तभी तो आज दिल्ली में सैलाब उमड़ आया है
इंसा क्या बस एक जहां से दूसरे जहां का परिंदा है।
हम जैसे कई लोगों में अटल हमेशा जिंदा है।
भावबीनी श्रद्धांजलि।।
सरताज मोहम्मद शकील
बैंक ऑफ इंडिया।।